Wednesday 21 September 2011

दर्द

कभी कभी हम अपने ही दर्द और आदत के इतने आदी हो जाते हैं की उसे भी पकड़ लेने की कोशिश करने लगते हैं , तैयार ही नहीं होते आँखें खोल कर सुबह देखने के लिए | पर ये दर्द है क्या? करोड़पति न बन पाने का दुःख , या परीक्षा में ९०% न ला पाने का दुःख, या एक गाडी ही क्यूँ है इसका दुःख ? किस दर्द की बात कर रहे हैं हम ? ग्रीक विद्वानों को लगता था की नाटक  का सबसे उत्कृष्ट रूप दुखांत नाटक ही हो सकते हैं , और ये कोई खास गलती भी नहीं थी क्यूँ अगर हम गाड़ियों और बंगलों और सत्ता में सुख देखें  तो फिर सर्वं दुखम ही ज्यादा अच्छा है | तो आप किस दर्द की बात कर रही हैं मैं समझ नहीं पा रहा , हाँ बहुत सारे व्यक्ति हैं  जिनकी मूलभूत आवश्कता ही पूरी नहीं हो पाती , पर इसके जिम्मेदार कौन लोग हैं, बस एक इच्छा जो है सिर्फ मेरा है , इसलिए घेरा डाल दिया है हमने हर तरफ, मेरी जमीन, मेरे पैसे, मेरी गाडी, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे , कोई छोटा घेरा डाल रेहा है तो कोई बड़ा, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता की कोई एक हजार की बात कर रहा है या एक लाख की, भावना दोनों मैं एक ही है, और इसकी कोई सीमा भी नहीं है अगर सीमा जैसा कुछ होता तो कि नहीं अगर इतने पैसे आ जायें तो मैं छोड़ दूंगा धन कि लिप्सा को, पर कोई सीमा है ही नहीं, अब तो आश्रम भी घेरने में परिपक्व हो चुके हैं, जिन्हें मुक्त करना था व्यक्ति को वो अब घेर रहे हैं जमीन, गाड़ियाँ और कुछ नही तो भक्त ही या तथाकथित शिष्य ही, तुम्हारे कितने शिष्य हैं बस एक हजार , तुम छोटे  साधू हो, मुझे देखो मेरे पास १० हजार हैं और उन में विदेशी भी हैं, ये गम हैं लोगों के पास , कोई छोड़ने को तैयार नहीं है बस दर्द दर्द चिल्लाये पड़े हैं , एक छोटी सी घटना है कल कि ही, और मेरे सामने की है, भाई बहन थे , लड़की दिल्ली जा रही थी और भाई जा रहा था उसे स्टेशन छोड़ने , रास्ते में दोनों का एक्सिडेंट हुआ और लड़की के सर में चोट आई, खून बह रहा था, और वो लड़की हॉस्पिटल में अपने सर से बहता खून नहीं देख रही है वो कह रही थी की मेरा लैपटॉप तो नहीं टुटा , मेरे मोबाइल कहाँ है ?
तो आप जरा स्पष्ट करिए ऐसा कौन सा गम है दूसरों का जिसे देख कर आप दुखी होते हो, और रही बात मरघट पसंद आने की तो ये स्वाभाविक है , हम में से अधिकाश डरे हुए हैं मौत से , सबसे बड़ा डर, और उन्ही डरपोक लोगों ने  मरघट को अपवित्र और डरावना घोषित कर दिया , कि श्मशान से लौटो तो नहाओ, उधर मत जाया करो, सोचा था उन लोगों कि सारे सबूत ही मिटा देंगे तो मौत का डर आएगा कहाँ से?
पर वो भूल जाते हैं कि वो तो आनी ही है, पुराने कपडे फट जायेंगे तो बदलना तो है ही , जब हम पुराने कपड़ों से मोह नहीं रखते तो फिर ऐसा क्यूँ करना, पर हुआ उल्टा उम्र के साथ जीवन को भी अधिकांश लोग बस पकड़ लेना चाहते हैं कि बस दबोच लो , छोड़ेंगे ही नहीं जिंदगी को |

No comments:

Post a Comment