Monday 26 September 2011

मेरा हिस्सा

रात के इन क्षणों में से
बचा लिया है मैंने खुद का इक कोना
जहाँ पहुँच पाते हैं
सिर्फ सपने  मेरे
तुम्हारे सो जाने पर
जग  जाया करती है
मेरी डायरी चुपचाप
और जाने क्या
उकेरा करती हूँ अपनी कल्पना में
उन बातों को
जो सुन नही पाते तुम
बोल दिया करती हूँ
अपनी कविताओं में
आँखों से गिरे मोती
छुप जाया करते हैं
दो पंक्तियों के बीच
अपनी कार की तरह
क्या तुम संभाल पाओगे
 मेरे बचपन की नन्हीं चूड़ियों को
माफ़ करना तुम्हारी तरह
सीख नहीं पाई हूँ
हिसाब-किताब
इसीलिए रिक्शेवाले को
दे दिए थे कुछ पैसे ज्यादा
रोज मांग नहीं पाती    
बूढ़े नौकर से हर पैसे पर पर्ची
इस सर्वस्व समर्पण के बाद भी
कुछ बच गया है मेरे पास
जो दे नहीं पाई हूँ तुम्हें
जो सहमत नहीं हो पाता
तुम्हारी बहुत सी बातों से
बच गया है
मेरे अंदर का कोई कोना
जहाँ से जन्म लिया करती है
अजन्मी कविता
                    

1 comment:

  1. तुम्हारे सो जाने पर
    जग जाया करती है
    मेरी डायरी चुपचाप...bahut sunder Abhi....diary ko jagaye rakhna.....

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