Sunday 2 October 2011

अभिशाप

हम दोनों ने ले लिया है
अभिशाप
नदी के दो  पाट होने का
रोज ही चला करती है नाव
हम दोनों के बीच
ताकि
उतार सकें खुशियों के यात्री
एक दूसरे के किनारों पर
तुम्हारी ओर की गौरैया
आ जाती है तिनके चुनने
मेरे  किनारों पर बैठा चकवा
बन जाता है मेरी ही आवाज
सुबह का सूरज मुझे छू कर
चला जाता है तुम्हे जगाने
और देख लिया करता हूँ
शाम तुममें डूबते हुए
अक्सर पुरवाई में
खोजा करता हूँ
तुम्हारे सांसों की महक
पर सर्दी  की रातें
कट नहीं पातीं ठिठुरते हुए
तुम्हारे किनारे पर झोपड़ी
में जलता दिया
बुझ जाया करता है
 तेल खत्म हो जाने से
मैं जानता हूँ उनकी भूख देख कर
सो नहीं पाती
तुम भी
हाँ
हम दोनों ने चुना था
दो  पाट होना
ताकि बह सके नदी
हम दोनों के बीच से
पर हमारे बीच की नदी
को मोड़ दिया जायेगा एक दिन
और रह जायेगा
सिर्फ अभिशाप
हम दोनों के बीच
            - अभिषेक ठाकुर

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया लिख रहे हैं अभिषेक आप. हिंदी में नए कवियों और कविताओं की कमी होती जा रही है. ऐसे ही लिखते रहें. बहुत-बहुत बधाई.

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