प्रेम व्याप्त है
अनकहे शब्दों
और अनसुने जज्बातों के साथ
हम दोनों के अनबोलेपन के साथ
बह कर चला आता है फिर भी
घर से निकलने पर घेर लेता
दुआ बन कर
समझने की कोशिश
पूरी नहीं हो पाई है अब तक
तुम्हे जान भी नहीं सकता कभी
ज्ञाता और ज्ञेय का भेद
जन्म दे देता है दो अलग अस्तित्वों को
पर अजनबी भाषा के संगीत की तरह
तुम समा रही हो मुझ में
बिना समझे, बिना जाने
जुड़ गया है रिश्ता कोई
पर तुम्हारे न होने पर
तुम ही देखती हो दीवारों पर अपना नाम
और शाम ढल जाया करती है जल्दी ही
- अभिषेक ठाकुर
अनकहे शब्दों
और अनसुने जज्बातों के साथ
हम दोनों के अनबोलेपन के साथ
बह कर चला आता है फिर भी
घर से निकलने पर घेर लेता
दुआ बन कर
समझने की कोशिश
पूरी नहीं हो पाई है अब तक
तुम्हे जान भी नहीं सकता कभी
ज्ञाता और ज्ञेय का भेद
जन्म दे देता है दो अलग अस्तित्वों को
पर अजनबी भाषा के संगीत की तरह
तुम समा रही हो मुझ में
बिना समझे, बिना जाने
जुड़ गया है रिश्ता कोई
पर तुम्हारे न होने पर
तुम ही देखती हो दीवारों पर अपना नाम
और शाम ढल जाया करती है जल्दी ही
- अभिषेक ठाकुर
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