यकीन मानो मैंने सिर्फ गम उकेरे थे अपने कागज पर
तेरी तस्वीर बनाने का तो कोई इरादा ना था
पांव बढ़ते ही नही दर से ये उनकी मर्जी
तेरे दिल से न जाने का तो कोई इरादा ना था
तेरा अक्स शीशे में उतर आया होगा
ज़ाम होंठों से लगाने का तो कोई इरादा ना था
उसके अपनों ने मरने की जगह भी न छोड़ी होगी
उसका सरेराह गुजर जाने का तो इरादा ना था
उसकी जीत पर क्यूँ ना हैरानी होगी
उसका जीत जाने का तो कोई इरादा ना था
फ़कत उसका गम बुझाने की चाह थी मेरी
गमों से ऐसे झुलस जाने का तो इरादा ना था
ज़माने का लिहाज कर लिया होगा वरना
उनका मेरी कब्र पर आने का तो इरादा ना था
- अभिषेक ठाकुर
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