Monday 28 November 2011

नयी कोपलें उग आई हैं
उस नीम में
बेकार समझ कर
पिछली गर्मी में काट दिया था जिसे
हाँ वही नीम
फिर से उठ रहा है
अपनी नन्हे हाथों से
कोशिश कर रहा है फिर से
तुम्हारी छत की उचाईयों के पार जाने की
उसकी शाखें घेर लेंगी तुम्हें
और उसकी पत्तियां छा जाएँगी
तुम्हारे घर पर
उस एक क्षण
तुम कितने छोटे हो जाओगे
और कितनी छोटी हो जाएगी तुम्हारी कुल्हाड़ी
- अभिषेक ठाकुर

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