Monday 28 November 2011

अपने समंदर होने से अब तो थक चूका हूँ मैं
दरिया से कहो आ कर बरस जाये मुझ पर
इतनी ज्यादा रौशनी और शब होती ही नहीं
सूरज से कहो अब तो ढल जाये मुझ पर
इतना वक़्त बीत चूका , और अभी ये शादाबी
...बिना मर्जी के कैसे उम्र गुजर जाये मुझ पर
मेरे हर दर्द पे उफ़ ये उसकी हमदर्दी
यूँ वो अपनी अदाकारी दिखाए मुझ पर
कैसे चुप रहूँ और मुस्कुराऊं यारों?
गम जब हद से भी ज्यादा गुजर जायें मुझ पर
- अभिषेक ठाकुर

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