अनगढ़ पत्थरों को
भगवान बनाने का
हुनर छोटा होता होगा
तुम्हरी बने मूर्ति
रोज पूरी कर देती है
जाने कितनों की इच्छाएं
पर तुम्हारी एक भी इच्छा पूरी नहीं हो पाई है
अब तक
सड़क किनारे पड़ी तुम्हारी झोपड़ी
अब भी सूरज और बरसात का स्वागत किया करती है
तुम्हारा बेटा स्कूल नहीं जाता
पत्थरों को ढ़ोया करता है
और छेनी और हथोड़े के साथ
अब भी तुम्हारे हाथ
गढ़ते रहते हैं
दूसरों की
इच्छाओं का भविष्य
- अभिषेक ठाकुर
No comments:
Post a Comment