Monday 28 November 2011

भोर का तारा
दिखा नहीं है अभी
ढक लिया होगा नन्हे बादलों ने
हवा में फैली जलते टायर की गंध
आ रही है कहीं पास से ही
आज फिर एक रात काट दी होगी
किसी ने
ठण्ड से बिना सोये ही
सामने के घर का रसोईघर
रोज जाग जाता है
दिन के जागने से पहले ही
रोटियां पकातीं चूड़ियों की आवाज
कर रही होती है तैयारी
किसी को काम पर भेजने की
काले घेरों से घिरी आँखें
खुल जाती हैं
कई बार देर हो जाने के डर से
सूरज के बिना उगे ही
जाने कितने घरों में
ढल जाया करती है
दोपहर
- अभिषेक ठाकुर

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