अस्पताल के बिस्तर से
धूप पूरी नहीं दिखा करती
दिन का होना
तो बस मरीजों की भीड़ से पता चलता है
सफ़ेद दीवारों से टकरा कर रंग
बिखर बिखर से जाते हैं
बिस्तर पर तुम्हे सोचता हूँ
और दवाइयों से आधी खुली आँखों
तुमको खिड़की के पार खोजा करती हैं
तुमने सफ़ेद कपडे पहने होंगे शायद
इसलिए धूप भी अब सतरंगी नहीं लगती
- अभिषेक ठाकुर
No comments:
Post a Comment