Monday 28 November 2011

झूठ कहते हो तुम
नहीं मरे होगे
भूख से
दिल्ली मैं बैठ कर
रोज ही तो बहस होती है
तुम्हारी भूख पर
स्टूडियों में लिपे पुते चेहरे
खेला करते हैं
तुम्हारी भूख के आंकड़ों के साथ
इतन सारा चावल तो सड़ गया था ना
बिना तुम्हारे खाए ही
तुम्हारे घर तक नहीं पहुँच पाई है
अभी उजाले की चमक
लालटेन की रौशनी में
गुम हो जाते हो
दीवार के ताम्बई रंग के साथ
भूख से मरे नही होगे तुम
पर शायद
जिन्दा नही रह पाए होगे
बर्बाद हुई फसल
और बिना चुकाए कर्ज के साथ
- अभिषेक ठाकुर

No comments:

Post a Comment