सैलाब की खुशबू
भर रही है नथुनों में
पिछली बार
पासपोर्ट बनवाते हुए
चक्कर लगाए थे अनगिनत
वो क्षोभ अब भी सुलग
रहा है सब में
वन्दे मातरम
चिल्लाते मेरी उम्र के लोग
देखे थे सिर्फ स्कूलों में
इन आँखों में चमक रहे हैं
फिर से कुछ सपने
आपात काल कब देखा है मैंने
बस किताबों में पढ़ा था
आजादी की लड़ाई को
पहली बार
देख रहा हूँ
लोगों को ऐसे बहते
मन के किसी कोने में
उम्मीद का पौधा उग आया है
जाने कहाँ से
निकल आया हूँ फिर से सड़कों पर
रौशनी के वास्ते
- अभिषेक ठाकुर
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