घर से निकले कच्चे रास्ते
खो जाया करते थे
खेतों के बीच
नंगे पैरों के साथ
खेत से गुजरते
खो जाने का डर
पास भी नहीं आया कभी
बिना रौशनी के
गाँव में
देर शाम तक
हर हाथ तैयार था
घर पहुँचाने को
पर जाने क्यूँ
पक्के सीमेंट
के रिश्ते और रास्ते
जोड़ नही पाते खुद को
और घर के बगल की गली
में ही गुजरते हुए
अक्सर भूल जाता हूँ
अपना मकान
- अभिषेक ठाकुर
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