Monday 28 November 2011

कुछ खोज रहा था मैं
कुछ सपने
जिन्हें मैंने बचपन में देखा करता था
कुछ अपने
जिनके साथ जीने का वादा था
कुछ अनगढ़े से तराने
जिन्हें मैं अकेले में गुनगुनाया करता था
आज मैंने पढ़ ली है कुछ किताबें
और सीख ली है दुनियादारी
और सिर्फ मेरा होना भीड़ का हिस्सा हो गया
और अब
और अब तो
सपने तो सिर्फ बच्चे ही देखते हैं
और अपने पुरानी कहानियों का हिस्सा हो चुके हैं
- अभिषेक ठाकुर

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