सारे मौसम लगे नए-नए से हैं
ख़ुशी के फेर में खुद से ही खो गए से हैं
अब तो नींद भी आ कर नहीं डसती
ख्वाब सारे डर के कहीं सो गए से हैं
ये वक़्त की कैसी आंधी गुजर गयी मुझ पर
...तमाम दोस्त भी लगे अजनबी से हैं
इस से ज्यादा अपनी तन्हाई का बयान कैसे करूँ?
मेरे हमसफ़र साए भी मुझसे डरे डरे से हैं
सारे मौसम लगे नए-नए से हैं ....................
- अभिषेक ठाकुर
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