Friday 2 December 2011


बिन मुड़े ही जिस शख्स ने तोड़े रिश्ते
मैं अब भी उसके लौट आने के इंतजार में हूँ
इस शहर की भीड़ में खो चुका खुद को
मकां के घर में बदल जाने के इंतजार में हूँ
अभी से उसके बारे में बोल दूं कैसे?
... उसके नकाबों के उतर जाने के इंतजार में हूँ
जिस समन्दर ने मेरी कश्ती को डूबो रखा है
उसी समन्दर के उफ़न जाने के इंतजार में हूँ
मैं उनके इश्क में जाने कब का मिट भी चुका
जो कहते हैं तेरे गुजर जाने के इंतजार में हूँ
जिन दरख्तों के साथ बचपन का नाता हो
कैसे कह दूं कि उनके ढह जाने के इंतजार में हूँ
अब के बच्चों ने सवाल करना छोड़ दिया
किसी मासूम से सवाल के इंतजार में हूँ
- अभिषेक ठाकुर

No comments:

Post a Comment