घर के पीछे की दीवार
सफ़ेद नहीं रह गयी है
जलते दीयों के साथ
तुम्हारा चेहरा जाने कितनी बार
उभर आता है उन पर
बारिश में भीगे मेरे मन की तरह
हर स्पर्श के बाद उसका कोई हिस्सा
रह जाता है मेरे हाथों में ही
हर कोने पर लिख दिया है तुम्हारा नाम
जिसे देख नही पाता कोई
काली स्याही से लिख दिया है नया नाम
पर बेमानी है अपनी संपत्ति बना लेने की कोशिश
अब की बरसात के बाद
तुम्हारा नाम लिख नहीं पाऊँगी कहीं
- अभिषेक ठाकुर
No comments:
Post a Comment