Tuesday 24 January 2012

घर के पीछे की दीवार
सफ़ेद नहीं रह गयी है
जलते दीयों के साथ
तुम्हारा चेहरा जाने कितनी बार
उभर आता है उन पर
बारिश में भीगे मेरे मन की तरह
हर स्पर्श के बाद उसका कोई हिस्सा
रह जाता है मेरे हाथों में ही
हर कोने पर लिख दिया है तुम्हारा नाम
जिसे देख नही पाता कोई
काली स्याही से लिख दिया है नया नाम
पर बेमानी है अपनी संपत्ति बना लेने की कोशिश
अब की बरसात के बाद
तुम्हारा नाम लिख नहीं पाऊँगी कहीं
- अभिषेक ठाकुर

No comments:

Post a Comment