साथी
लो फेंक दिए हैं मैंने अपने पंख
जो दूर ले जाया करते थे मुझे
तुमसे
गुनगुनी धूप पीछे छोड़ आया हूँ
ताकि तुम्हारी पीड़ा पिघल न जाये
उड़ने और सतरंगे सपनो की चाभी
खो दी है मैंने
साथी
अलग नहीं होगा
रंग हम दोनों के रक्त का
उजाले छोड़ दिए हैं मैंने
और कर ली है दोस्ती
तुम्हारी जिंदगी के अंधेरों से
- अभिषेक ठाकुर
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