Thursday 1 March 2012

नींद से भरी पलकों
के दर पर नींद का ना
आना अजीब सा है
और उतना ही अजीब है
अपने लगाये हरसिंगार
के पौधे की इंच दर इंच
बढती पत्तियों को
देखना
और इंतजार करते रहना
उस पहले फूल का
जो बन जाता है प्रतीक
सृजन का
पर तुम हँस देती हो
हैरान नहीं होती
इन में से किसी बात पर
और सोचती हो
तितलियों के पंखों
के रंगों के बारे में
और खोजती हो
नक्शों पर
परियों के देश को
सच !
कितना अजीब है ना
नींद का पलकों पर आना
और विदा हो जाना चुप चाप
- अभिषेक ठाकुर
मैंने अधिकार दे दिया है
शब्दों को रूठ जाने का
और बना लिया है अपना घर
नदी की बहाव से दूर
टहलती नींद
कर देती है इनकार
मेरी आँखों से गुजर कर जाने से
और खो जाती है
नदी किनारे उगे झुरमुटों में
- अभिषेक ठाकुर

पीला चाँद



इक शाम,
पीले चाँद की ऊँगली थामे
कुछ यादें मुझसे मिलने आयीं थीं
उदासी का एक गीत
जिसमें 'तुम ' नहीं
तुम्हारा ना होना था
हमने साथ गुनगुनाया
एक कहानी जिसमें
कोई राजा या रानी नही थीं
थे सिर्फ गुलाम
अपनी इच्छाओं की गठरी ढ़ोते
कुछ रोते और टुकड़ों में जीते
वे खोजा करते हैं -
रेगिस्तान की पीली रेत में
पीले चाँद का अक्स
बरसों पहले
तुम्हारी बातों की ऊँगली थामे
चाँद मेरे गाँव के तालाब में
उतर आता था
ताकि धुल सके
अपने चेहरे का पीलापन
आज भी चाँद पीला ही है
और मैं इंतजार कर रहा हूँ बिन सोए
पीले रंग की केंचुल उतरने का
- अभिषेक ठाकुर