Thursday 1 March 2012

पीला चाँद



इक शाम,
पीले चाँद की ऊँगली थामे
कुछ यादें मुझसे मिलने आयीं थीं
उदासी का एक गीत
जिसमें 'तुम ' नहीं
तुम्हारा ना होना था
हमने साथ गुनगुनाया
एक कहानी जिसमें
कोई राजा या रानी नही थीं
थे सिर्फ गुलाम
अपनी इच्छाओं की गठरी ढ़ोते
कुछ रोते और टुकड़ों में जीते
वे खोजा करते हैं -
रेगिस्तान की पीली रेत में
पीले चाँद का अक्स
बरसों पहले
तुम्हारी बातों की ऊँगली थामे
चाँद मेरे गाँव के तालाब में
उतर आता था
ताकि धुल सके
अपने चेहरे का पीलापन
आज भी चाँद पीला ही है
और मैं इंतजार कर रहा हूँ बिन सोए
पीले रंग की केंचुल उतरने का
- अभिषेक ठाकुर

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