Wednesday 19 September 2012

आज शाम घिर आएगी
कुछ जल्दी ही
समन्दर किनारे की पीली रेत से
मिट चुकी होगी हमारी हथेलियों की छाप
लहरों ने फेंक दिए हैं
सीपियाँ और कुछ रंग बिरंगे पत्थर
जिन्हें हाथों में भर
खुश हो जाएगा
एक नन्हा सा बच्चा
और हम हँस देंगे उसकी मासूमियत पर

और भूल जायेंगे दुखती हुई सांसों
और हथेलियों के बीच पिघलती हुई ऊष्मा को
- अभिषेक ठाकुरआज शाम घिर आएगी
कुछ जल्दी ही
समन्दर किनारे की पीली रेत से
मिट चुकी होगी हमारी हथेलियों की छाप
लहरों ने फेंक दिए हैं
सीपियाँ और कुछ रंग बिरंगे पत्थर
जिन्हें हाथों में भर
खुश हो जाएगा
एक नन्हा सा बच्चा
और हम हँस देंगे उसकी मासूमियत पर
और भूल जायेंगे दुखती हुई सांसों
और हथेलियों के बीच पिघलती हुई ऊष्मा को
- अभिषेक ठाकुर

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