आज शाम घिर आएगी
कुछ जल्दी ही
समन्दर किनारे की पीली रेत से
मिट चुकी होगी हमारी हथेलियों की छाप
लहरों ने फेंक दिए हैं
सीपियाँ और कुछ रंग बिरंगे पत्थर
जिन्हें हाथों में भर
खुश हो जाएगा
एक नन्हा सा बच्चा
और हम हँस देंगे उसकी मासूमियत पर
कुछ जल्दी ही
समन्दर किनारे की पीली रेत से
मिट चुकी होगी हमारी हथेलियों की छाप
लहरों ने फेंक दिए हैं
सीपियाँ और कुछ रंग बिरंगे पत्थर
जिन्हें हाथों में भर
खुश हो जाएगा
एक नन्हा सा बच्चा
और हम हँस देंगे उसकी मासूमियत पर
और भूल जायेंगे दुखती हुई सांसों
और हथेलियों के बीच पिघलती हुई ऊष्मा को
- अभिषेक ठाकुरआज शाम घिर आएगी
कुछ जल्दी ही
समन्दर किनारे की पीली रेत से
मिट चुकी होगी हमारी हथेलियों की छाप
लहरों ने फेंक दिए हैं
सीपियाँ और कुछ रंग बिरंगे पत्थर
जिन्हें हाथों में भर
खुश हो जाएगा
एक नन्हा सा बच्चा
और हम हँस देंगे उसकी मासूमियत पर
और हथेलियों के बीच पिघलती हुई ऊष्मा को
- अभिषेक ठाकुरआज शाम घिर आएगी
कुछ जल्दी ही
समन्दर किनारे की पीली रेत से
मिट चुकी होगी हमारी हथेलियों की छाप
लहरों ने फेंक दिए हैं
सीपियाँ और कुछ रंग बिरंगे पत्थर
जिन्हें हाथों में भर
खुश हो जाएगा
एक नन्हा सा बच्चा
और हम हँस देंगे उसकी मासूमियत पर
और भूल जायेंगे दुखती हुई सांसों
और हथेलियों के बीच पिघलती हुई ऊष्मा को
- अभिषेक ठाकुर
और हथेलियों के बीच पिघलती हुई ऊष्मा को
- अभिषेक ठाकुर
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