ताजे उगे बुरांस के फूलों सी
रात
समेट ली है मैंने अपनी आँखों में
और अपने शहर के क्षितिज पर
फैला दिया है
सुनहरी यादों को
पर तुम्हारे शहर में
रात जाने कैसे
बदल गयी है
अनंत पीड़ा में
रात
समेट ली है मैंने अपनी आँखों में
और अपने शहर के क्षितिज पर
फैला दिया है
सुनहरी यादों को
पर तुम्हारे शहर में
रात जाने कैसे
बदल गयी है
अनंत पीड़ा में
गमले में उगे नन्हे पौधे
की जिद
से
चाँद खिंच आया है
शायद थोडा और करीब
आज की रात
घिर आने दो
थोड़े से और बादलों को
और ढक लेने दो
उस दीवार को
जो पनप आई है
रात के बीच
- अभिषेक ठाकुर
की जिद
से
चाँद खिंच आया है
शायद थोडा और करीब
आज की रात
घिर आने दो
थोड़े से और बादलों को
और ढक लेने दो
उस दीवार को
जो पनप आई है
रात के बीच
- अभिषेक ठाकुर
No comments:
Post a Comment