Sunday 21 October 2012

दोराहे पर खड़े रास्तों
के साथ
चिल्लाते हैं कुछ शब्द
अमलताश के सूख चुके पत्तों
में उभर नहीं पाती कोई कविता
मैं सोच नहीं पाता
महसूसता हूँ
गले हुए जिस्मों पर
लाल स्याही से बने निशानों को
कविता !

फिर से ढूंढ़ लेगी
कुछ जीते जागते शब्द
- अभिषेक ठाकुर

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