Friday 16 November 2012

अजीब शै का खुद का खुद को समझाना भी
लो मेरी मर्जी में हैं रूठना-मनाना भी
बर्बादियों के दिन अब दूर नहीं शायद
मेरे हाथ से निकल चुका है नींद का आना-जाना भी
मेरे इंतजार का दिया न जाने कब से रौशन है
हवा क्या भूल चुकी जलाना-बुझाना भी
- अभिषेक ठाकु

Friday 9 November 2012


दुनिया के सारे नक्शे कहीं पीछे छुटे
हमक़दमों की तलाश में है कारवां मेरा
मंजिलें भी हार कर अब तो पीछे हों लीं
नए रस्तों की तलाश में है कारवां मेरा
ये दौड़ते रहने की बातें समझ नहीं आतीं
नयी किताबों की तलाश में है कारवां मेरा
सारी शराबें भी अब तो पानी सी हुईं
नए मयखानों की तलाश में है कारवां मेरा
जहाँ मयस्सर सबके हिस्से का एक सूरज हो
उन्ही सुबहों की तलाश में है कारवां मेरा
- अभिषेक ठाकुर

Saturday 3 November 2012

ताजी चिता के जलने से दूर
एक अघोरी खोजता है
बर्फ में
वर्षों पहले छुपा कर
रखी गईं लाल चूड़ियों
लहू से रंगोली बनाते हाथ
रुकते नहीं
और बर्फ महसूस करती है
ताजे खून की गर्माहट
अघोरी देखता है

अष्टमंडल के
खाली पड़े कोनों को
और गिरा देता है जपमाला
- अभिषेक ठाकुर