Friday 16 November 2012

अजीब शै का खुद का खुद को समझाना भी
लो मेरी मर्जी में हैं रूठना-मनाना भी
बर्बादियों के दिन अब दूर नहीं शायद
मेरे हाथ से निकल चुका है नींद का आना-जाना भी
मेरे इंतजार का दिया न जाने कब से रौशन है
हवा क्या भूल चुकी जलाना-बुझाना भी
- अभिषेक ठाकु

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