Tuesday 19 February 2013

वो शब्द तलाश रहा था इन दिनों , वो आखिरी शब्द जो विदा होते समय नदी ने उससे कहा था | उसने सोचा शब्द ही तो है , एक अदना सा शब्द , वैसे भी वो देश का ख्यातिप्राप्त विद्वान था | शब्दों से खेलने और शब्दों का अर्थ बदलने के उसके हुनर के कायल पूरी पूर्वी दुनिया में फैले थे | पुस्तकालयों की कई दिन खाक छानने बाद वो उस शब्द से मिलता जुलता शब्द भी खोज नही पाया | वो पांडुलिपियों की तलाश में उत्तर के सुदूर मठों तक गया | उसने पत्र लिखे उन रहस्यवादियों और सुदूर पश्चिम के कबीलों को जिनका जीवन पूरी तरह नदियों पर ही निर्भर था | अंत में उसने एक बुजुर्ग के बारे में सुना जो पानी और हवा को समझ सकता था जो इतनी दूर रहता था कि सबसे तेज चलने वाला पानी का जहाज भी एक साल में उस तक पहुँच सकता था | उसने निश्चय किया कि वो इस शब्द को खोज कर रहेगा |

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