Tuesday 19 February 2013

बरसात भिगो रही है
गड्ढों में पड़ी सड़क को
मुंडेर पर बैठी गौरैया
छिप नहीं पाई थी
बच्चे भूखे होंगे शायद
चंद चावल के दाने
जो बिखेरे थे मैंने
उसके आने के पहले ही
गायब हो चुके हैं
गुलमोहर की छोटी छोटी
पत्तियां हिल भी नहीं रहीं हैं
अब तो
पी जाना चाहती हैं
हर इक बूंद को
कॉफ़ी में मिला दी थीं
कुछ बूंदें बारिश की
और देख रहा हूँ भीगते
खम्भों को
- अभिषेक ठाकुर

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