Monday 13 February 2012

भटकता फिरता हूँ राहों में नाम लेता हूँ
तेरी अहद की ख़ातिर मैं ज़ाम लेता हूँ
तिश्नगी से ही जब प्यास बुझे होंठों की
भरी दरिया को ही इक सहरा बना लेता हूँ
- अभिषेक ठाकुर

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