Monday 21 January 2013

मैंने पहली बार जाना
कवितायेँ
सिर्फ शब्द नही होतीं
वो सांस लेती हैं
गर्म बेचैन सांसें
और जोड़ देती हैं
सर्द रात को
सुबह की गर्मी से
हम दोनों के बीच
ऊँचे दरख़्त थे
और अनचीन्हे फूलों
से घिरी एक बेनाम कब्र
हर रात जमे हुए आंसुओं
को तय करना पड़ता था एक
फासला
और हर रात वो बदल
देती थी
जमी हुई भावनाओं
को जिन्दा
साँस लेती
कविताओं में
- अभिषेक ठाकुर

No comments:

Post a Comment