Saturday 12 January 2013

सफ़ेद कोहरे से ढकी रेत और दम तोड़ते अलाव के बीच सोचता हूँ उस आखिरी बचे हर्फ़ के बारे में नदी जलती रही थी सारी रात घुटनों तक नदी में खड़े उस साधू के कांपते हाथों ने झूठ कहा था - अभिषेक ठाकुर ( संगम और फिर से अमृत की तलाश )

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