संभावनाओं की यात्रा
Tuesday 24 January 2012
रौशनी में देखे लेने से
भरम हो जाता है ना जान लेने का
पर घने अंधेरों में दिख जाती हैं
दीवारें
जो खड़ी की हैं रौशनी ने
पर नींद में सूरज खोजते स्वप्नों
से दूर
मैं सीख लूँगा एक दिन
भाषा
अंधेरों की
- अभिषेक ठाकुर
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