Wednesday 19 September 2012

तुझ से जुदा होकर भी तेरे शहर के ख्वाब
मेरे ख्वाबों में जिन्दा हैं तेरे शहर के ख्वाब

ये रातों का जहर कैसे खोज पता तुझको
मेरी मुट्ठी में छिप गये हैं तेरे शहर के ख्वाब

अँधेरा अब भी मेरे आँगन से डरा करता है
शाम होते ही उतर आते हैं तेरे शहर के ख्वाब

तेरी आरजू अब नही किया करता 'अतम'
तेरे ना होने से हैं तेरे शहर के ख्वाब
- अभिषेक ठाकुर

No comments:

Post a Comment