कई तरह के सन्यासी हैं हमारे भारत में, एक उस तरह के हैं जिनके लिए नारी मुई घर संपत्ति नासी मूड मूडाए भए सन्यासी वाला सन्यास है. और कुछ दूसरे नित्यानंद की तरह के | पर एक दूसरी तरह का सन्यास भी है जो आदि शंकराचार्य और विवेकानंद की तरह का है , जो केवल अपने मोक्ष की चिंता नहीं करता बल्कि बुद्ध की महाकरुणा की तरह तरह तब तक जन्म लेने में यकीन रखता है जब तक जगत क्ले हर प्राणी को निर्वाण उपलब्ध न हो जाए | और जो आपने कहा ना समझने की बात तो हाँ कई बार हम समझ नहीं पाते कि पारस ये नहीं देखता कि लोहा कहाँ का था कसाई के घर का या फिर मंदिर का वो तो बस उसे सोने में बदलना जानता है बशर्ते वो पारस ही हो. और ये उदाहरण मेरा नहीं है बल्कि विवेकानंद के जीवन कि एक घटना है जब एक दरबार में नृत्य करने वाली ने विवेकानंद को इस भजन से सायास के असली स्वरुप का ज्ञान करवाया था |
इक लोहा पूजा में रखता इक घर वधिक पड़ो
पारस गुण अवगुण नहीं चितवत कंचन करत खरो
इक लोहा पूजा में रखता इक घर वधिक पड़ो
पारस गुण अवगुण नहीं चितवत कंचन करत खरो
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