मरना सिर्फ खबर है
रोज के अख़बारों में
जिसे अक्सर नही पढ़ा करता मैं
पेड़ों के कटने के साथ
कहीं हिसाब नही रखा जाता
उन अनगिनत घरौदों का
जो मिट गये पेड़ के साथ ही
कहीं गिनती नही होती उस भविष्य की
जो बचे रहते हैं
सिर्फ अतीत के सपनों के रूप में
घरों के सामने का खालीपन
सिर्फ कुछ दिन ही याद रहता है
आदत डाल लेते है हम
बिन गौरैयों के जीने की
मरने के खबरों की तरह
हमने सुनना छोड़ दिया है
और ऊँची कर ली है
अपनी अपनी दीवारें
- अभिषेक ठाकुर
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