Monday 28 November 2011

हमने वादा किया था
अलग हो जायेंगे एक दूसरे से
बिना आंसू बहाए
सिर्फ सपनों में देखा करेंगे
एक दूसरे को हँसते रोते हुए
पर विदा की राहों पर
लगा दिए गए हैं कंटीले तार
जाति, धर्म और हैसियत के नाम पर
जो कस गया है
एक दूसरे को थामे हमारे हाथों पर
और हवा में घुलने लगी है ताजे खून की महक
पर घबराना मत प्रिय
जमीन और पानी में मिलने के बाद
ये खोज नहीं पाएंगे हम दोनों को अलग अलग
डरना मत प्रेम से डरे हुए इन लोगों से
इनकी कुल्हाड़ियाँ
जो सिर्फ मिटाना जानती है
और कुछ चौपालें तय किया करती हैं
सांस और इज्जत की कीमत
कुछ बीज बच जायेंगे हर बार
और हमारे लहू से संचित होकर
ढक लेंगे एक दिन
सारी कायनात को
- अभिषेक ठाकुर

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