आंसू व्यक्त नहीं कर पाते
कुछ जज्बातों को
आँखें भीग नही पातीं अब
पर शुष्क ह्रदय की भाषा
अक्सर हो जाती है दुरूह
और
चुभने लगती है कानों को
सच्चाइयों से रूबरू करवाती
आईना दिखाती
निस्वार्थता का सबक
सिर्फ एक को
याद रहने से
प्रेम अक्सर ही बन जाता है
गुलामी
- अभिषेक ठाकुर
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