क्या है ये ?
प्रारंभ एक उत्सव का?
या तैयारी एक नई लड़ाई की ?
आज की रात नहीं है
सोने की
फिर से उमड़ रहे हैं
बादल
तैयार हैं बूंदें
फिर से बरस जाने को
आँखें मानने को कब तैयार होती हैं
ऐसी जीत
सवाल बाकी हैं अभी भी कुछ
सवाल होंगे भी आगे
पर आज रात सूरज
चमक रहा है सर पर
और अँधेरा छुप कर कांप
रहा है लोगों की चमकती आँखों से
- अभिषेक ठाकुर
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