नाकामी के तमाम सुबूत धुल गए कल रात
मैं उसके सीने पर सर रखकर खूब रोया था
इस फसल के सुख जाने का दर्द मरने जैसा है
इन पेड़ों के साथ ही तो सपना बोया था
मुझे अपनेपन का सुबूत न दे डर सा लगता है
तमाम उम्र मैं अपनों के बीच ही तो खोया था
कच्ची नींद और उम्र ने जगा दिया उसे वक़्त से पहले ही
वो देर रात ही तो इस सड़क पर सोया था
खुद को ही खो दिया ख्वाब के उस टूटे टुकड़े की खातिर
जो तेरी गली में सोते जागते संजोया था -अभिषेक ठाकुर
मैं उसके सीने पर सर रखकर खूब रोया था
इस फसल के सुख जाने का दर्द मरने जैसा है
इन पेड़ों के साथ ही तो सपना बोया था
मुझे अपनेपन का सुबूत न दे डर सा लगता है
तमाम उम्र मैं अपनों के बीच ही तो खोया था
कच्ची नींद और उम्र ने जगा दिया उसे वक़्त से पहले ही
वो देर रात ही तो इस सड़क पर सोया था
खुद को ही खो दिया ख्वाब के उस टूटे टुकड़े की खातिर
जो तेरी गली में सोते जागते संजोया था -अभिषेक ठाकुर
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